बढ़ी दाड़ी, उजड़े बाल
एक फ़कीर है वो
कोई राजा नहीं
चल बैठा है झोला उठाकर।।

जलते मास की सुगंध
है हवाओं में।
आज श्मशान रौशन है
चिताओं की कमी नहीं।।

फ़कीर नहीं, साधक है वो
चला है वो शव-साधना को।
छप्पन इंच की छाती पर
दो लाख शव उठाकर।।