Image by Astrid Zellmann from Pixabay
छैला (ठियोग) में मैंने 3-4 दिन पहले एक खाड़ू को डाँटा: भाई, पब्लिक में क्यूँ थूक रहा है? इतनी महामारी फैल रही है।
मुझे आँखें दिखाता हुए बोला: चल चल आगे बढ़। सारी दुनिया थूक रही है, मेरे थूकने से बड़ा फैलेगा कोरोना।
मैं डरा सहमा कि कहीं ये जाहिल गुस्से में, मुझ पर ही न थूक दे, जल्दी से वहाँ से, भीगी बिल्ली बन, कट लिया।
कल शाम संजौली चौक पर एक दूसरा खाड़ू मिला। उसने अदब से मास्क नीचे उतारा, अपना गला खंगारा और अदब से बीच सड़क पे अपने गले का माल उतार दिया। वो मेरे आगे चल रहा था। मैंने वही वाक्य दोहराया।
पर मैं तब शर्मिंदा हुआ जब पता चला कि वह तो बहरा था। पीछे मुड़ के भी नहीं देखा। मैं कुत्ते की तरह भौंकता रहा और वो मस्त हाथी की तरह चलता रहा!
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