“तुम्हें क्या तकलीफ है?” ये जवाब था एक युवक का जो शायद 26-28 साल से ज़्यादा उम्र का है। ये नौजवान संजौली चौक पे थूकता हुआ पाया गया और इसका ये जवाब मेरे टोकने पर था: “पब्लिक में क्यूँ थूक रहे ह
“मुझे क्या तकलीफ है?” मैं चिल्लाया। “तकलीफ तो हमें ही होगी अगर तुम कोरोना ग्रसित होगे।” मैं ये कहते हुए संजौली चौक पर गोपाल केमिस्ट के सामने खड़े दो पुलिस कर्मियों की तरफ लपका, तो ये हिमाचली टोपी धारी युवक संजौली कॉलेज हॉस्टल के रास्ते की तरफ भागा। चौक पर नार्थ ओक की तरफ के दुकानदार मुझे घूरने लगे मानो मुझे कोई दौरा पड़ा हो।
खैर मैं इस खाड्डू का तो चालान नहीं करवा पाया, परन्तु मैं हैरान हूँ कि ये लोग सरकार के इतने अभियान के बाद में भी नहीं सुधर रहे। न इन्हें कोरोना से मरने का डर है और न चालान का।
और मैं थक गया हूं सँजौली के सब्जी वालों को बोल बोल कर कि भाई लिफ़ाफ़े में फूँक न मारे। कुछ वैसे ही मास्क गले में लटकाते हैं, बाकी फूँक मारने के लिए मास्क नीचे कर लेते हैं। नाक तो कोई विरला ही मास्क से ढकता है। न जाने इस फूँक मारने में कितनी थूक लिफ़ाफ़े में जाती है, और coronavirus भी।
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