Image by Krzysztof Kowalski from Pixabay
क्या मसला था बुरास को होंठो पर?
क्या निचोड़ा था बादलों को गालों पर?
सिलता काजल, खिलता सिंदूर
झंझरी ओढ़नी से छनता नूर
काफल सी दंत-कथाएँ
बाँचती रात रती की व्यथाएँ।
आ चलें उन बादलों पे एक बार फ़िर।
चाँदनी में नहाने को एक बार फ़िर।।
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