क्या मसला था बुरास को होंठो पर?
क्या निचोड़ा था बादलों को गालों पर?

सिलता काजल, खिलता सिंदूर
झंझरी ओढ़नी से छनता नूर
काफल सी दंत-कथाएँ
बाँचती रात रती की व्यथाएँ।

आ चलें उन बादलों पे एक बार फ़िर।
चाँदनी में नहाने को एक बार फ़िर।।