असौज अथवा अश्विन मास की सन्क्राती थी। संयोग से मैं अपने गाँव में था। प्रथा है कि १५ दिन पहले, भाद्रपद मास में, घर के सामने चीड़ा लगाया जाता है। स्वयं दिल्ली में रहते हैं अतः हमारे घर के आगे चीड़ा मेरे चाचा के परिवार जन लगा दिया करते हैं।
दादी, मेरे चाचा की माताजी, ने कहा, “अगर घर आ गया है तो चीड़े का पूजन तुम ही करो।”
मेरे लिये यह पहला अनुभव था। पता नहीं था कि क्या करना है। तो दादी ने समझाया और हो गया झटपट चीड़ा पूजन।
चीड़ा एक मिट्टी का गोल ढेला है जो कि अश्विन मास की सन्क्राती से १५ दिन पहले घर के आगे सुसज्जित कर दिया जाता है। उसके चारों तरफ जौ यानी कि जई बो दी जाती है और ढेले पर एक पत्थर की सिल रख कर उस पर अग्नि प्रजवल्लित कर दी जाती है।
भाद्रपद को काला मास माना जाता है। अतः मानयता है कि यह रौशनी देवताओं व पित्रों को राह दिखाने के लिए की जाती है। इन पन्द्रह दिनों में जौ काफी उग आते हैं। अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को इस चीड़े का पुनः पूजन किया जाता है।
जिस दिन चीड़ा लगाया जाता है उस दिन ग्राम व अन्य देवताओं का जागरा अथवा जगराता किया जाता है।
पूजन में नेऊज़ यानि की पूरी एवं फल फूल चढ़ाए जाते हैं। एवं पुनः सिल पर आग जला कर व धूप दिखा कर रौशन की जाती है। अगली सुबह चीड़े को गिरा दिया जाता है।
Related posts
Leave a Reply Cancel reply
Hot Topics
Categories
- Art (4)
- Cinema (3)
- Culture (3)
- Food (2)
- General Thoughts (3)
- Health (2)
- Life (5)
- Lifestyle (7)
- Media (2)
- My Writings Elsewhere (1)
- News (2)
- People (2)
- Photography (1)
- Places (1)
- Poems (24)
- Politics (4)
- Religion (3)
- Review (1)
- Society (3)
- Startups (1)
- Stories (3)
- Tech (1)
- Travel (2)
- Uncategorized (1)
- Who Cares! (5)
- Women (2)
- अभौतिकता (2)
- आमोद (5)
- कविता (27)
- जीवन (8)
- धर्म – कर्म (6)
- पत्र (4)
- पर्यावरण (1)
- राजनीति (4)
- लोक गीत (4)
- विवाह (1)
- व्यंग्य (4)
- सम्बन्ध (3)
- संस्कृति (6)
- सामान्य विचार (11)
- स्त्री (2)
- स्वप्न (1)
Stay connected