–१७ नवम्बर २००१

बेचैन कर रही तेरी याद
दिल को चीर कर एक आवाज़।
पुनः पुनः पुकार रही
अर्चना। अर्चना। अर्चना।

इन पर्वतों से टकराकर
प्रतिध्वनि मस्तिष्क पर।
हथोड़ों सी चीख रही
अर्चना। अर्चना। अर्चना।

मेरी सॉंसों ने
मध्य रात्रि में जगाया
तेरा नाम आलाप कर
अर्चना। अर्चना। अर्चना।

चाहा कुछ लिखना, कुछ लेख,
कुछ कविता कुछ कहानी।
कलम करती रंगीन, श्वेत पृष्ठ को
अर्चना। अर्चना। अर्चना।

करता हूँ जब भी अर्चना
माता का नाम लेकर
अर्चना मेरी बस यही
चाहूँ मैं केवल
अर्चना। अर्चना। अर्चना।