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कविता

कातिब इज़हार-ए-पर्ची 

बेकराँ बेकरारे दिल मेरे लिए कातिब इज़हार-ए-पर्ची मेरी किसी सहीफे में डाल कर भूल जा। शब-ए-फुरकत का जागा सफ्हा पलटता आ जाऊँ कभी हैरत में।। – ०५/१०/२०१२
कविता

इति 

रंगा बिल्ला दो उपन्यासकार विकृत करते न केवल इतिहास वेद पुराण उपनिषद स्मृति बदल रहे सबकी परिभास जब ज्योति ज्यो इति हो गई तो अमर जवान भी अ मर हो गया सद्गतिरंगाबिल्ला असत्यर्गमय अमृत्योरंगाबिल्ला मृत्योर्गमय ज्योतिरंगाबिल्ला तमसोर्गमय
कविता

बनारस का राजा 

कपिल का श्राप है ये कोरोना न समझो। भय काहे का जब बनारस का राजा हमारा है मोक्षदाता। राजा हमारा भागीरथ इक्ष्वाकु वंशज 60,000 शवों को गंगा में प्रवाहित कर मुक्ति प्रदान कर गया।।
कविता

क्या मसला था बुरास को होंठो पर? 

क्या मसला था बुरास को होंठो पर? क्या निचोड़ा था बादलों को गालों पर? सिलता काजल, खिलता सिंदूर झंझरी ओढ़नी से छनता नूर काफल सी दंत-कथाएँ बाँचती रात रती की व्यथाएँ। आ चलें उन बादलों पे एक बार फ़िर। चाँदनी में नहाने को एक बार...